Panchatantra

मूर्खसाधु

किसी गाँव में एक साधु रहता था।उसेअपनेभक्तोंसेदानमेंतरहतरहकेवस्त्रमिलतेथे।उनवस्त्रोंकोबेचकरउससाधुनेकाफीधनजमाकरलियाथा।लेकिनवहसाधूहमेशाअपनेधनकीसुरक्षाकेलिएचिंतितरहताथा।वहअपनेधनकोएकपोटलीमेंरखताथाऔरउसेहमेशाअपनेसाथलेकरहीचलताथा।

उसी गाँव में एक ठग रहता था।बहुत दिनों से उसकी निगाह साधु के धन पर थी।ठगहमेशासाधुकापीछाकियाकरताथा,लेकिनसाधुउसगठरीकोकभीअपनेसेअलगनहींकरताथा।आखिरकार,उसठगनेएकछात्रकावेशधराऔरउससाधुकेपासगया।उसनेसाधुसेमिन्नतकीकिवहउसेअपनाशिष्यबनालेक्योंकिवहज्ञानप्राप्तकरनाचाहताथा।साधुतैयारहोगयाऔरइसतरहसेवहठगसाधुकेसाथरहनेलगा।

河中的圣人

ठगनेसाधुकीखूबसेवाकीऔरजल्दीहीउसकाविश्वासपात्रबनगया।एकदिनवेदोनोंपासकेकिसीगाँवमेंएकधार्मिकअनुष्ठानमेंजारहेथे।रास्तेमेंएकनदीपड़ीऔरसाधुनेस्नानकरनेकीइक्षाव्यक्तकी।उसनेपैसोंकीगठरीकोएककम्बलकेभीतररखाऔरउसेनदीकेकिनारेरखदिया।उसनेठगसेसामानकीरखवालीकरनेकोकहाऔरखुदनहानेचलागया।ठग को तो कब से इसी पल का इंतज़ार था।जैसेहीसाधुनदीमेंडुबकीलगानेगया,वहरुपयोंकीगठरीलेकरचम्पतहोगया।

इसकहानीसेहमेंयेशिक्षामिलतीहैसिर्फइसलिएकिसीपरविश्वासनहींकरलेनाचाहिएकिवोचिकनीचुपड़ीबातेंकरताहै।



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