8 हिंदी वसंत

सुदामाचरित

नरोत्तमदास

सीस पगा न झँगा तन में, प्रभु!जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।
धोतीफटी——सीलटीदुपटी,अरुपाँयउपानहओनहिंसामा॥
द्वारखड़ोद्विजदुर्बलएक,रह्योचकिसोंबसुधाअभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥



येपदउसप्रसिद्धप्रसंगकाचित्रणकरतेहैंजबसुदामाऔरकृष्णकामिलनाहोताहै।दोनों बचपन के मित्र होते हैं।वयस्कहोनेपरकृष्णराजाबनजातेहैंलेकिनसुदामानिर्धनहीरहतेहैं।अपनीपत्नीकेकहनेपरसुदामाकुछमददकीउम्मीदसेकृष्णसेमिलनेजातेहैं।

कृष्णकाद्वारपालआकरबताताहैकिएकव्यक्तिजिसकेसिरपरनतोपगड़ीहैऔरनाहीजिसकेपाँवमेंजूतेहैं,उसनेफटीसीधोतीपहनीहैऔरबड़ाहीदुर्बललगताहै।वहचकितहोकरद्वारकाकेवैभवकोनिहाररहाहैऔरअपकापतापूछरहाहै।वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय!महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए॥
देखिसुदामाकीदीनदसा,करुनाकरिकैकरुनानिधिरोए।
पानीपरातकोहाथछुयोनहिं,नैननकेजलसोंपगधोए॥

कृष्णतुरंतजाकरसुदामाकोलिवानेपहुँचजातेहैं।उनकेपैरोंकीबिवाईऔरउनपरकाँटोंकेनिशानदेखकरकृष्णकहतेहैंकिहेमित्रतुमनेबहुतकष्टमेंदिनबिताएहैं।इतने दिनों में तुम मुझसे मिलने क्यों नहीं आए?सुदामा की खराब हालत देखकर कृष्ण बहुत रोये।कृष्णइतनारोयेकिसुदामाकेपैरपखारनेकेलिएपरातमेंजोपानीथाउसेछुआतकनहीं,औरसुदामाकेपैरकृष्णकेआँसुओंसेहीधुलगये।

कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु॥
आगेचनागुरुमातुदएते,लएतुमचाबिहमेंनहिंदीने।
स्यामकह्योमुसकायसुदामासों,“चोरीकीबानमेंहौजूप्रवीने।।
पोटरिकाँखमेंचाँपिरहेतुम,खोलतनाहिंसुधारसभीने।
पाछिलिबानिअजौनतजोतुम,तैसईभाभीकेतंदुलकीन्हे॥”

सुदामाकेस्वागतसत्कारकेबादकृष्णउनसेहँसीमजाककरनेलगे।कृष्णनेकहाकिलगताहैभाभीनेमेरेलियेकोईउपहारभेजाहै।उसेतुमअपनीबगलमेंदबाएक्योंहो,मुझेदेतेक्योंनहीं吗?तुम अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे।बचपनमेंजबगुरुमाताहमारेलियेचनेदेतीथीतोसारातुमहड़पजातेथे।उसीतरहसेआजभीतुमभाभीकेदियेहुएचिवड़ेकोमुझसेछुपारहेहो।

वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आदर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात॥
कहा भयो जो अब भयो, हरि को राज समाज।
हौं आवत नाहीं हुतौ, वाहि पठ्यो ठेलि।।
घर घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज।
अब कहिहौं समुझाय कै, बहु धन धरौ सकेलि॥

सुदामा फिर अपने घर की ओर लौट चलते हैं।जिसउम्मीदसेवेकृष्णसेमिलनेगयेथे,उसकाकुछभीनहींहुआ।कृष्ण के पास से वे खाली हाथ लौट रहे थे।लौटतेसमयसुदामाथोड़ेखिन्नभीथेऔरसोचरहेथेकिकृष्णकोसमझनामुश्किलहै।एकतरफतोउसनेइतनासम्मानदियाऔरदूसरीओरमुझेखालीहाथलौटादिया।मैंतोजानाभीनहींचाहताथा,लेकिनपत्नीनेमुझेजबरदस्तीकृष्णसेमिलनेभेजदियाथा।जोअपनेबचपनमेंथोड़ेसेमक्खनकेलिएघर——घरभटकताथाउससेकोईउम्मीदकरनाहीबेकारहै।

वैसोई राज-समाज बने, गज, बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधोंपर्योकहुँमारगभूलि,किफैरिकैमैंअबद्वारकाआयो॥
भौनबिलोकिबेकोमनलोचत,अबसोचतहीसबगाँवमझायो।
पूँछतपाड़ेफिरेसबसोंपर,झोपरीकोकहुँखोजनपायो॥

जबसुदामाअपनेगाँवपहुँचेतोवहाँकादृश्यपूरीतरहसेबदलचुकाथा।अपनेसामनेआलीशानमहल,हाथीघोड़े,बाजेगाजे,आदिदेखकरसुदामाकोलगाकिवेरास्ताभूलकरफिरसेद्वारकापहुँचगयेहैं।थोड़ाध्यानसेदेखनेपरसुदामाकोसमझमेंआयाकिवेअपनेगाँवमेंहीहैं।वेलोगोंसेपूछरहेथेलेकिनअपनीझोपड़ीकोखोजनहींपारहेथे।

कैवहटूटीसीछानीहती,कहँकंचनकेअबधामसुहावत।
कै पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत॥
भूमि कठोर पै रात कटै, कहँ कोमल सेज पै नींद न आवत।
केजुरतोनहिंकोदोसवाँ,प्रभुकेपरतापतेदाखनभावत॥

जबसुदामाकोसारीबातसमझमेंआगईतोवेकृष्णकेगुणगानकरनेलगे।सुदामा सोचने लगे कि कमाल हो गया।जहाँसरकेऊपरछतनहींथीवहाँअबसोनेकामहलशोभादेरहाहै।जिसकेपैरोंमेंजूतेनहींहुआकरतेथेउसकेआगेहाथीलियेहुएमहावतखड़ाहै।जिसेकठोरजमीनपरसोनापड़ताथाउसकेलिएफूलोंसेकोमलसेजसजाहै।प्रभु की लीला अपरंपार है।




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