क्षितिज क्लास 10 हिंदी

परशुराम लक्ष्मण संवाद

तुलसीदास

येचौपाइयाँऔरदोहेरामचरितमानसकेबालकांडसेलीगईंहैं।यहप्रसंगसीतास्वयंवरमेंरामद्वाराशिवकेधनुषकेतोड़ेजानेकेठीकबादकाहै।शिवकेधनुषकेटूटनेसेइतनाजबरदस्तधमाकाहुआकिउसेदूरकहींबैठेपरशुरामनेसुना।परशुरामभगवानशिवकेबहुतबड़ेभक्तथेइसलिएउन्हेंबहुतगुस्साआयाऔरवेतुरंतहीराजाजनककेदरबारमेंजापहुँचे।क्रोधितपरशुरामउसधनुषतोड़नेवालेअपराधीकोदंडदेनेकीमंशासेआयेथे।यहप्रसंगवहाँपरपरशुरामऔरलक्ष्मणकेबीचहुएसंवादकेबारेमेंहै।



नाथ संभुधनु भंजनिहारा।होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही।सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई।अरिकरनी करि करिअ लराई॥

परशुरामकोक्रोधितदेखकरलक्ष्मणकहतेहैंकिहेनाथजिसनेशिवकाधनुषतोड़ाहोगावहआपकाहीकोईसेवकहोगा।इसलिए आप किसलिए आये हैं यह मुझे बताइए।इसपरक्रोधितहोकरपरशुरामकहतेहैंकिसेवकतोवोहोताहैजोसेवाकरे,इसधनुषतोड़नेवालेनेतोमेरेदुश्मनजैसाकामकियाहैऔरमुझेयुद्धकरनेकेलिएललकाराहै।

सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाइ बिहाइ समाजा।न मारे जैहहिं सब राजा॥
सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने।बोले परसुधरहि अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लरिकाईं।कबहुँ न असि रिस किन्हि गोसाईँ॥

रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार्।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार॥

वेफिरकहतेहैंकिहेरामजिसनेभीइसशिवधनुषकोतोड़ाहैवहवैसेहीमेरादुश्मनहैजैसेकिसहस्रबाहुहुआकरताथा।अच्छाहोगाकिवहव्यक्तिइससभामेंसेअलगहोकरखड़ाहोजाएनहींतोयहाँबैठेसारेराजामेरेहाथोंमारेजाएँगे।यहसुनकरलक्ष्मणमुसकरानेलगेऔरपरशुरामकामजाकउड़ातेहुएबोलेकिमैंनेतोबचपनमेंखेलखेलमेंऐसेबहुतसेधनुषतोड़ेथेलेकिनतबतोकिसीभीऋषिमुनिकोइसपरगुस्सानहींआयाथा।इसपरपरशुरामजवाबदेतेहैंकिअरेराजकुमारतुमअपनामुँहसंभालकरक्योंनहींबोलते,लगताहैतुम्हारेऊपरकालसवारहै।वहधनुषकोईमामूलीधनुषनहींथाबल्किवहशिवकाधनुषथाजिसकेबारेमेंसारासंसारजानताथा।

लखन कहा हसि हमरे जाना।सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें।देखा राम नयन के भोरें।।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू।मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥

लक्ष्मणनेकहाकिआपमुझसेमजाककररहेहैं,मुझेतोसभीधनुषएकसमानलगतेहैं।एकदोधनुषकेटूटनेसेकौनसानफानुकसानहोजायेगा।उनकोऐसाकहतेदेखरामउन्हेंतिरछीआँखोंसेनिहाररहेहैं।लक्ष्मणनेआगेकहाकियहधनुषतोश्रीरामकेछूनेभरसेटूटगयाथा।आप बिना मतलब ही गुस्सा हो रहे हैं।

बोलै चितै परसु की ओरा।रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधौं नहि तोही।केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही।बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही।बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहुभुजछेदनिहारा।परसु बिलोकु महीपकुमारा॥

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥

इसपरपरशुरामअपनेफरसेकीओरदेखतेहुएकहतेहैंकिशायदतुममेरेस्वभावकेबारेमेंनहींजानतेहो।मैंअबतकबालकसमझकरतुम्हारावधनहींकररहाहूँ।तुममुझेकिसीआमऋषिकीतरहनिर्बलसमझनेकीभूलकररहेहो।मैंबालब्रह्मचारीहूँऔरसारासंसारमुझेक्षत्रियकुलकेविनाशककेरूपमेंजानताहै।मैंनेअपनेभुजबलसेइसपृथ्वीकोकईबारक्षत्रियोंसेविहीनकरदियाथाऔरमुझेभगवानशिवकावरदानप्राप्तहै।मैंने सहस्रबाहु को बुरी तरह से मारा था।मेरे फरसे को गौर से देख लो।तुमतोअपनेव्यवहारसेउसगतिकोपहुँचजाओगेजिससेतुम्हारेमातापिताकोअसहनीयपीड़ाहोगी।मेरेफरसेकीगर्जनासुनकरहीगर्भवतीस्त्रियोंकागर्भपातहोजाताहै।



बिहसि लखनु बोले मृदु बानी।अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि दिखाव कुठारु।चहत उड़ावन फूँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं।जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥

इसपरलक्ष्मणहँसकरऔरथोड़ेप्यारसेकहतेहैंकिमैंजानताहूँकिआपएकमहानयोद्धाहैं।लेकिनमुझेबारबारआपऐसेकुल्हाड़ीदिखारहेहैंजैसेकिआपकिसीपहाड़कोफूँकमारकरउड़ादेनाचाहतेहैं।मैंकोईकुम्हड़ेकीबतियानहींहूँजोतर्जनीअंगुलीदिखानेसेहीकुम्हलाजातीहै।

देखि कुठारु सरासन बाना।मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी।जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई।हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधें पापु अपकीरति हारें।मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥

जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।

मैंनेतोकोईभीबातऐसीनहींकहीजिसमेंअभिमानदिखताहो।फिरभीआपबिनाबातकेहीकुल्हाड़ीकीतरहअपनीजुबानचलारहेहैं।आपकेजनेऊकोदेखकरलगताहैकिआपएकब्राह्मणहैंइसलिएमैंनेअपनेगुस्सेपरकाबूकियाहुआहै।हमारेकुलकीपरंपराहैकिहमदेवता,पृथ्वी,हरिजनऔरगायपरवारनहींकरतेहैं।इनकेवधकरकेहमव्यर्थहीपापकेभागीनहींबननाचाहतेहैं।आपकेवचनहीइतनेकड़वेहैंकिआपनेव्यर्थहीधनुषबानऔरकुल्हाड़ीकोउठायाहुआहै।इसपरविश्वामित्रकहतेहैंकिहेमुनिवरयदिइसबालकनेकुछअनापशनापबोलदियाहैतोकृपयाकरकेइसेक्षमाकरदीजिए।



कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु।कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥
भानुबंस राकेस कलंकू।निपट निरंकुसु अबुधु असंकू॥
कालकवलु होइहि छन माहीं।कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौ चाहु उबारा।कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥

ऐसासुनकरपरशुरामनेविश्वामित्रसेकहाकियहबालकमंदबुद्धिलगताहैऔरकालकेवशमेंहोकरअपनेहीकुलकानाशकरनेवालाहै।इसकीस्थितिउसीतरहसेहैजैसेसूर्यवंशीहोनेपरभीचंद्रमामेंकलंकहै।यहनिपटबालकनिरंकुशहै,अबोधहैऔरइसेभविष्यकाभानतकनहींहै।यहतोक्षणभरमेंकालकेगालमेंसमाजायेगा,फिरआपमुझेदोषमतदीजिएगा।

लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी।बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु पुनि कछु कहहू।जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा।गारी देत न पावहु सोभा॥

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु॥

इसपरलक्ष्मणनेकहाकिहेमुनिआपतोअपनेयशकागानकरतेअघानहींरहेहैं।आप तो अपनी बड़ाई करने में माहिर हैं।यदि फिर भी संतोष नहीं हुआ हो तो फिर से कुछ कहिए।मैंअपनीझल्लाहटकोपूरीतरहनियंत्रितकरनेकीकोशिशकरूँगा।वीरोंकोअधैर्यशोभानहींदेताऔरउनकेमुँहसेअपशब्दअच्छेनहींलगते।जोवीरहोतेहैंवेव्यर्थमेंअपनीबड़ाईनहींकरतेबल्किअपनीकरनीसेअपनीवीरताकोसिद्धकरतेहैं।वेतोकायरहोतेहैंजोयुद्धमेंशत्रुकेसामनेआजानेपरअपनाझूठागुणगानकरतेहैं।



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